शिवरात्रि को लेकर अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार ऐसे तो हर महीने शिवरात्रि का व्रत आता है, लेकिन इसमें फाल्गुन और सावन माह के शिवरात्रि बहुत महत्व है। फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को तो महाशिवरात्रि कहा गया है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से हुआ था। शिवरात्रि को लेकर कुछ और अलग-अलग मत भी हैं। कई लोग ऐसा भी मानते हैं कि इसी दिन शिवजी ने ‘कालकूट’ नाम का विष पिया था। ये विष सागरमंथन के समय निकला था।
बहरहाल, आज हम जिस कथा का जिक्र करेंगे वो इन सबसे अलग है। ये कथा शिकारी की कथा से जुड़ी है। ये कथा बताती है कि कैसे एक शिकारी ने अनजाने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को न केवल व्रत कर लिया बल्कि शिव जी की पूजा भी की। इसके बाद उसे शिवजी की कृपा भी मिली। इस कथा का जिक्र 'शिव पुराण' में भी है।
Sawan Shivratri Katha in Hindi: शिवरात्रि की कथा
प्राचीन काल की बात है। गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी था। अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए रोज जानवरों का शिकार किया करता था। एक बार की बात है। शिवरात्रि के दिन वो शिकार के लिए निकला। हालांकि, वो दिन ऐसा रहा कि उसे कोई शिकार नहीं मिला। शिकारी ने सोचा वह खाली हाथ घर जाकर क्या करेगा। वो चिंतित भी था। इसी बीच उसे प्यास लगी। वो एक झील के पास गया और पानी पीकर प्यास बुझाई। सूर्यास्त होने ही वाला था।
शिकारी ने सोचा जरूर शाम ढलते ही कुछ जानवर पानी के लिए झील के पास आएंगे और फिर उसे आसानी से शिकार मिल सकता है। ऐसा सोचकर वो छिप कर एक पेड़ पर चढ़ गया। कहते हैं कि वह पेड़ बिल्ववृक्ष (बेल) का था। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी था जो वह देख नहीं सका था।
शिकारी पेड़ पर चढ़कर शिकार का इंतजार करने लगा। इसी बीच रात का पहला प्रहर बीतने से पहले एक हिरणी वहां पानी पीने पहुंची। शिकारी ने उसे देख लिया। उसने अपना बाणा धनुष पर चढ़ाया। ऐसा करने के बीच उसके बाण और हाथ के धक्के से बेल के कुछ पत्ते शिवलिंग पर गिरे। एक तरह से अनजाने में उसकी शिव पूजा हो गई। वहीं, हिरणी ने जब पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी, तो वो भी समझ गई कि कोई शिकारी बैठा है।
हिरणी ने शिकारी की ओर देखा और कांपते हुए मिन्नते करने लगी। हिरणी ने कहा कि वह अपने बच्चों को अपने बहन को सौंप कर लौट आयेगी। तब वह उसे मार डाले। शिकारी को पहले तो उसकी बात का भरोसा नहीं हुआ लेकिन बहुत आग्र के बाद उसने हिरणी से दोबारा आने का वादा लेकर जाने दिया।
Sawan Shivratri Katha in Hindi: शिकारी का बदल गया हृदय
थोड़ी देर बाद एक और हिरणी वहां आई। ये रात का दूसरा प्रहर था। वह पहले वाली हिरणी की बहन थी और उसे खोजते हुए वहां आ पहुंची थी। शिकारी ने फिर से शिकार साधने के लिए बाण चढ़ाया। इस बार भी पहले ही की तरह कुछ बेल पत्र उसके हाथ के धक्के से टूट कर नीचे शिवलिंग पर जा गिरे। अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गई। इस हिरणी ने भी शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन शिकारी ने अस्वीकार कर दिया।
शिकारी ने बताया कि उसके बच्चे और पत्नी भूखी हैं इसलिए वह उसे छोड़ नहीं सकता। इस पर हिरणी ने कहा कि वह पहले अपने बच्चों को बहन के पास सुरक्षित छोड़ आए, फिर खुद ही उसके पास आ जाएगी। शिकारी बहुत सोचने के बाद इस पर सहमत हो गया। हिरणी चली गई। इधर शिकारी सोचने लगा कि उसने दो शिकारियों को जाने दिया, अब पता नहीं कोई शिकार मिलेगा या नहीं।
वो दोनों हिरणी के लौटने का इंतजार करने लगा। इस बीच रात्रि का तीसरा प्रहर भी आ गया। तभी उसने एक हिरण को आते देख। एक बार वो फिर शिकार के लिए तैयार हो गया। इस बार भी उसके हाथ के धक्के से बेल के पत्र पेड़ से शिवलिंग पर गिर गए। अनजाने में तीसरे प्रहर में भी उससे शिव की पूजा हो गई। पत्तों की आहट देख हिरण ने ऊपर देखा। उसने भी शिकारी से मिन्नतें की। उसने कहा कि अगर शिकारी उसे मारना ही चाहता है तो थोड़ा इंतजार कर ले। वह अपने बच्चों को उसकी मां को सौंप कर लौट आएगा जो कुछ खाने-पीने का इंतजाम करने के लिए बाहर निकली थी और वह उसे ही खोजते हुए आया था।
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। ये हिरण दरअसल पहले आई हिरणी का पति था। अब रात्रि का अंतिम प्रहर आ चुका था। दूसरी ओर दोनों हिरणी और हिरण एक-दूसरे से मिले तो शिकारी से किए गए वादे की बात बताई। अब तीनों के सामने मुश्किल थी क्योंकि तीनों ने शिकारी के पास जाने का वादा किया था। बहरहाल, तीनों ने अपना वादा निभाने का प्रण लिया। रात्रि का अंतिम प्रहर खत्म होने ही वाला था कि शिकारी सभी हिरण-हिरणियों को अपने बच्चों सहित एक साथ आते देख लिया था। एक बार फिर उसने बाण अपने धनुष पर चढ़ाया।
पहले की ही तरह इस बार भी उसकी चौथे प्रहर की शिव-पूजा हो गई। दिन भर वो कुछ खा नहीं सका था और भूखा रहा था। इस प्रकार उसने शिवरात्रि का पूरा व्रत अनजाने में कर लिया। ऐसे में शिव कृपा से शिकारी के सभी पाप भस्म हो गये। उसका हृदय परिवर्तन हो गया और उसने हिरणों को मारने का विचार त्याग दिया। उसने तीनों को जाने दिया। उसके ऐसा करने पर भगवान शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया और सुख-समृद्धि का वरदान दिया। साथ ही भगवान शंकर ने शिकारी को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम उसके घर आएंगे और मित्रता करेंगे और फिर उसे मोक्ष भी प्राप्त होगा।



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